१७६ " थे ? अवश्य थे परंतु स्वार्थ मनुष्य को अंधा बना देता है। स्वार्थी मनुष्य स्वार्थ के नामने रहने पर न तो दुर्गुणो को देखता है, और न किसी हित की बातें सुनता है। यह ग्वार्थ कई प्रकार का होता है, यह धन सम्पत्ति की प्राप्ति तक ही परिमित नही होता, इसमे यश, मान की कामना, मर्यादा की रक्षा, कार्योद्धार, गौरव-लाभ, एवं विपत्ति निवारण आदि सभी बातें, सम्मिलित रहती हैं। दूसरी बात यह कि जव ममाज के अग्रणी अथवा प्रधान किन्ही कारण से उनकी ओर आकर्पित हो जाते हैं, तो साधारण मनुष्य उनका निराकरण समष्टि रूप में नहीं कर सकते, व्यष्टि रूप में भले हो कर ले । आजकल की भी यही अवस्था है। अंग्रेज जाति हमारी शासक है, पाश्चात्य शिक्षा-दीक्षा से ही इन दिनों अधिक लोग शिक्षित दीक्षित हैं, नाना रूप और नाना मार्गों से पाश्चात्य भाव यहाँ के लोगो के हृदय में स्थान पा रहे हैं, इस लिए वहाँ की सभ्यता ही लोगों को पसंद आ रही है, और वहाँ की रहनसहन प्रणाली ही प्यारी लग रही है । आज का नव शिक्षित समाज, खी स्वतंत्रता, युवती-विवाह, सहभाज, विधवा-विवाह आदि का पक्ष-पाती, और वाल- विवाह, जाति-पॉति एव धर्म-बंधन आदि का विरोधी है, यह यथातथ्य शासक जाति और पाश्चात्य भावो का अनुकरण है। ये वाते जिस रूप में गृहीत हो रही हैं भारत की हितकारिणी हैं; या नहीं, इनका क्या परिणाम होगा, इसको बतलाने पर भी आज कोई नहीं सुनता। समय का प्रवाह आज इन बातो के अनुकूल है, अतएव इन्ही विचारो मे उन्नति शील या सुधारकजन वह रहे हैं और दूसरो को भी अपना साथी बना रहे हैं। जो लोग इनका विरोध कर रहे हैं, उनकी गत वनाई जा रही है, और उनके प्रतिकूल घृणित से घृणित वाते कही जा रही हैं। समा- चार-पत्रों में उनके विरुद्ध जो कार्टून निकाले जा रहे हैं, होली इत्यादि के अवसरो पर जैसी गालियाँ उनको पत्रो में दी जाती हैं, जैसा उनकी कोसा जाता है, जैसी बेहूदा वाते उन्हें कही जा रही है, उनमे अश्ली-
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