पृष्ठ:रसकलस.djvu/२५

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( १५ ) हमारे ही समान उपाध्यायजी को इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिये हृदय खोल कर बधाई देता हुआ इस प्रथ-रत्न का समुचित समादर करेगा। इस ग्रंथ-रत्न में हमारी समझ से यदि रसों एवं भाव-भावनाओं ( Feelings and Emotions ) 1 Falastila ( Psycholo- gical) विवेचन भी और जोड़ दिया जाय (चाहे वह परिशिष्ट के ही रूप मे रखा जाये ) तो अत्युत्तम होकर सोने और सुगधि की कहावत को चरितार्थ कर दे। इसी के साथ यह भी दिखला देना उपयुक्तोपादेय सिद्ध होगा कि रस-सिद्धात नाटक-रचना से प्रारभ होकर अर्थात् नाटको के ही आधार पर प्रथम उठाया और उन्हीं के लिये आवश्यक ठहराया जाकर क्यो, कब और कैसे काव्य-शास्त्र के अदर प्राधान्य प्राप्त कर सका । इस संस्करण में इन बातों के दिये जाने की कठिनाई को देखते हुए हम उपाध्यायजी से दूसरे सस्करण में इनके देने का अनुरोध करते है, और इसलिये यह साग्रह कहते है जिससे यह अथ सर्वांग-पूर्ण होकर अपने रगढग का अकेला ही रहे और चिरस्थाया बन जावे। अन्त मे हम फिर उपाध्यायजी को इस ग्रंथ-रत्न के सफलतापूर्वक प्रणयन करके तथा हिंदी-साहित्य में काव्य-शास्त्र के इस अग की प्रशसनीय पूर्ति करने के लिये सहर्प हार्दिक साधुवाद देते हैं और विश्वास रखते हैं कि भावुक कवि-समाज, सहृदय वाचक-वृद तथा सुयोग्य समालोचक-समुदाय इसको समुचित समादर देते हुए अनुराग के साथ अपनायेगा । तथास्तु । रमेश-भवन विजन कृपाकाक्षी रामशङ्कर शुक्ल 'रसाल एम० ए० प्रयाग