पृष्ठ:रसकलस.djvu/२५९

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रस-कलस दोहा- हँसी मजु मुख मोरि के किलकी बनी ललाम । वदन • राग - रजित भई रागमयी बर वाम ॥११॥ (घ) उपहसित विहसित के लक्षणों के साथ जब सिर और कधे कॅपने लगते हैं, पूल जाती है, तिरछे ताका जाता है, तब 'उपहसित होता है । दोहा- तिरछी अखियन ते चितै चित चोरति चलि चाल । खिलि-खिलि आनन खोलिकै खिलखिलाति है बाल ।।१२ (ड) अपहसित आँसू टपकाते हुए उद्धत हास को 'अपहसित' कहते है । दोहा- बहु हॅसि-हसि हॉसी करति कहति रसीले बैन | सिर हिलि-हिलि सरसत रहत मोती बरसत नैन ||१३।। (च) अतिहसित आंसू बहाते हुए ताली देकर ऊंचे स्वर से ठठाकर हँसने को 'अति कहते हैं। दोहा- तिय तारी दे-दै हॅसति हिलति लता ली जाति । पुलक-बारि लोयन भरे पुलकित विपुल लखाति ।।१४|| ३-शोक हित की हानि अथवा इष्ट नाश किवा प्रिय पदार्थ की अप्राप्ति से घो दुख हता है उसका नाम 'शक' है।