पृष्ठ:रसकलस.djvu/३०८

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५६ संचारी भाव सवैया- 1 कै अहिफेन भख्यो के डॅस्यो अहि भूत भिन्यो कै कहूँ भभरी है। आनन ते बहु फेन वहावति कॉपत गात वेहाल-खरी है। ए 'हरिऔध' जनात न का भयों मूखति जाति क्यो वेलि हरी है। फूल-छरी-सम धूरि-भरी यह भूतल पै परी कौन परी है ।।२।। दोहा- खोये रतनन सुरति करि हहरत हा हा खात । अवनि-लुठत कॉपत, हिलन, फेनिल जलधि लखात ॥३॥ कै दुख-वस महि परि कॅपति फेन तजति अकुलाति । कै मिरगी मुँह मैं परी है मृगगी दिखाति ॥४॥ २८-आवेग . अचानक इष्ट वा अनिष्ट की प्राप्ति मे चित्त की आतुरी को 'आवेग' कहते हैं। इसके आकुलता, स्तभ, कप, हष और शोक आदि लक्षण हैं। इष्ट-जन्य आवेग में हर्ष और अनिष्ट-जन्य में शाक होता है। कवित्त- निज वेस वसन विसारहैं विराने बने वस होते वेवसी वितान क्यो तनत हैं जानि जानि सकल-सजीवन जरी को गुन जीवन गॅवाइ जाति-जर क्यों खनत हैं। 'हरिऔध' सदा के चतुर चातुरा बिहाइ आतुर कहाइ आतुरी मैं स्यो सनत हैं। बावले कहावत क्यों वात वावलों-सी कहि क्यों करि उतावली उतावले बनत हैं।॥१॥