पृष्ठ:रसकलस.djvu/३१०

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सचारी भाव > कत कछु को कछु है कहति कत अगिराति जम्हाति । काहे चंचलता-मयी चचल-नयति लखाति ।।६।। २९-त्रास किसी अहित भावना से हृदय जो भय उत्पन्न होता है उसे 'त्रास' कहते हैं । कप, पाकुलता, आशका आदि इसके लक्षण हैं । कवित्त- वनिकै अमर करि समर बचैहौं मान कसिकै कमर काम करिहौं अगेजो मैं । यमदंड केरी दंडनीयता निवारि दहौं करि देहौं खंड-खंड काल हू को नेजो मैं । 'हरिऔध' कैसो त्रास त्रास मानिहीं ना कौं रहन न देहीं पास भीति-भरो भेजो मैं। खरे हहैं रोम रोम-रोम तो उखारि देहौं कॉपिहै तो रेजो रेजो करिहो करेजो मैं ।। १ ।। दोहा- है न देस - हित भय - भरो है न भयावह बात । उभरि-उभरि कत चित्त तू भभरि-भभरि भजि जात ।। २ ।। गिरति उठति उठि-उठि गिरति सिहरति भजति जम्हाति । कत भामिनि भय ते भरी भभरी भूरि दिखाति ।।३।। ३०-उन्माद नाम, शोक, भय आदिक के प्राबल्य से चित्त में जो एक प्रकार का विक्षेप और व्यामोह होता है उसे 'उन्माद' कहते हैं। हँसना, रोना, गाना, व्यथ वकना आदि इसके लक्षण हैं।