पृष्ठ:रसकलस.djvu/३५२

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१०३ नायिका के भेद कैसे वसुधा को वसुधापन - विदित होत जो न होति सिद्ध - भूमि भारत - बसुंधरा ।।२।। चकित वनति हेरि उच्चता हिमाचल की चाहि कनकाचल की चारुता - चरमता। मुदित करति निधि - मानता है नीरधि की मानस - मनोहरता सुर - पुर की समता। 'हरिऔध' मोहकता हेरि मोहि मोहि जाति जनता - अमायिकता मैं है मन रमता। महनीय - महिमा निहारि महती है होति ममतामयी की मातृमेदिनी की ममता ॥३॥ वेद - गान - गौरवित जननी गजानन की पति की प्रसविनी कहति गज - गमनी। सेवति है सुर - सुरपति सेवनीय जानि मानति है मानि दानवीय - दल - दमनी । 'हरिऔध' पावनता भारत - अवनि पेखि परम - पुनीत रस - पूत होति धमनी । मन मैं रमै न कैसे रमा - रमनीय - धाम राम - जन्म - महि मैं रमै न कैसे रमनी || निजतानुरागिनी कवित्त- सास - असरसता अलसता वधू - जन की अ-लसित - सकल - विलासिता सताती है। सुकुसुम - कोमल - कुमारन की काम - रुचि कामिनि - अकमनीय - कामना कॅपाती है।