पृष्ठ:रसकलस.djvu/३५१

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उसकलस १०२ कहाँ है मधुर-साम-गान मुखरित - भूमि बानी के विलास की कहाँ है पूत-पलिका । कहाँ है सकल - रस - सरस - सरोज - पुंज सुख - मूल - मानव - समाज-मजु अलिका । 'हरिऔध' भारत - विभव - बर - वायु बल विकच बनै न कैसे बाला - उर - कलिका । प्रेम-सुधा विपुल - बिमुग्ध वसुधा मैं भरि कहाँ पै बजी है महा - मोहिनी मुरलिका ।।८।। जन्मभूमि-प्रेमिका कवित्त- कनक - प्रसू है कमनीयता - निकेतन है माननीयता - महि मदीयता की अवनी । लोक - पति-लालित त्रिलोक-पति-लीला-थल आलोकित - परम अलौकिकता - सजनी । हरिऔध' कैसे विरमै न वहु - मोद मानि रमनीय - भाव में रमित - मन - रमनी । जीवन - विधायिनी है प्रान धन - जीवन की जननी - जनक की है जन्म - भूमि-जननी ।। १ ।। कैसे सुर - सरि सुर करति असुर हूँ को कासी क्यो वनति मुक्ति - मेदिनी-मनोहरा । अरुचिर - दारु चारू - चदन बनत कैसे कॉच - महि कैमे होति कचन - कलेवरा । 'हरिऔध' कैसे मैल लहत मती सी सुता सिता क्यो मुहाति है सुधारस - सहोदरा ।