पृष्ठ:रसकलस.djvu/३७०

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१२१ नायिका के भेद तू बड़भागिनि ह गई भयो भाग मो मंद । अरी चंद - बदनी बनेउ कत फीको मुख-चंद ।।४।। वक्रोक्तिगर्विता वक्रोक्तिगर्विता के दो मेद हैं-रूपगर्विता और प्रेमगर्विता। रूपगर्विता रूप का गर्व रखनेवाली नायिका रूपगविता कहलाती है। उदाहरण कवित्त- छोरि छोरि आम की रसीली मंजरीन कॉर्हि निकसि गुलाब के प्रसून रस - वारे से। गुंजरत .याही ओर देखु यह आवत है अति - कमनीय कंज - बन के किनारे से । 'हरिऔध' की सौं आइ अबहीं मचैहै धूम गूजि गूजि आनन - सुवास के सहारे से। भूलि अब भौन ते न बाहर कढ़ौगी कबौं ऊबि गई एरी या मलिद मतवारे से ॥१॥ सवैया- पकज चंद लखे सकुचै मुख सौंह मयंक हूँ लाज गही है। मोहकता मम आनन लौं अजहूँ जलजातन नाहिं लही है । गोल-कपोल विलोचन-लोल-सरोजन मैं 'हरिऔध' नहीं है। एते बिभेद भयेहूँ कहा इन भौरन की मति भूलि रही है ।।२।। दोहा- क्यों हूँ सहि लीनी कहे कुंद - कली लौ दंत । मो मुख कहे मयंक सम होत कलंकित कंत ॥ ३॥ २३