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पृष्ठ:रसकलस.djvu/३७१

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रसकलस १२२ बरवा- रजनीपति - छबि अखिया निरखि लजाय । कैसे मोर छयलवा रहत लुभाय ।।४॥ प्रेमगर्विता पति-प्रेम का गर्व रखनेवाली स्त्री प्रेमगर्विता कहलाती है। उदाहरण कवित्त- साजि साजि बीरी पानदान भरि राख खासे खासदानहूँ मैं लाइ अतर धो करै। मानत न लै लै साज साजत रहत सेज तानत वितान जाते सुमन मयो करै। 'हरिऔध' भूखन हूँ सकल सजाइ मद - मंद बतराइ मोद मन मैं भयो करें चहल - पहल परिचारिकान हूँ के रहे महल हमारे मजु टहल को करै ।।१।। विमुख मयूख ते है ऊवि ऊख-रस हूँ ते अधर - पियूख ही को परकि पियो करें। आन न बिलोकै हेरि आनन - मनोहर को तानन सुनाइ मोहि प्रानन लियो करें। 'हरिऔध' कारी सटकारी तमतोमवारी जोहि जोहि जोमवारी जुलफ जियो करै। प्यारे - प्यारे - मन - वारे मोहित - करनहारे सौतुक हमारे केते कौतुक कियो करें ॥२॥ । मानवती प्रिय का अपराध सूचित करनेवाली चेष्टा जिस स्त्री में पाई जाती है उसे मानवती कहते हैं।