पृष्ठ:रसकलस.djvu/३७२

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१२३ नायिका के भेद - उदाहरण कवित्त- किती कामिनीन वारे रसिक कलानिधी सो कालिमा लगी ना कवौ कौमुदी-कहानी मैं । मदमाते भृगन सो माखै मालती हूँ नाहि भाख ना मसूसि रूसि मरी मुरझानी मैं । 'हरिऔध' की सौ कही मानु एरी मानवारी वतियों न मान की हैं तनकी निसानी मैं । करत गुमान तू तो कैसे रैहै अरमान मान तू करत तो करत मनमानी मै ॥१॥ सवैया- कछु मोसो भई तकसीर नहीं हठ के हकनाहक तू न अरै। 'हरिऔध' है सूधो सदा को कहा करि कै छल छंदन ताको छरै। मन माने हमारी कही कबहूँ पै मया के न मोसो मिजाज करें। यह कैसी कुवानि तिहारी परी जो घरी-घरी तासों तनेनी परै ॥२॥ ज्येष्ठा-कनिष्ठा कतिपय विवाहिता स्त्रियों में पति को जो सबसे अधिक प्यारी हो उसको ज्येष्ठा और अन्य स्त्रियों को कनिष्ठा कहते हैं। दोहा- पिय जिय राजी भो उठी सजी सौति - उर पीर । मॅजी रही कव की जो यो बजो मंजु-मंजीर ।।१।। कवित्त- सुंदर सुहाग को सराहना न मोते होति तेरे मंजु भागहूँ की गरिमा अथोर है ।