सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रसकलस.djvu/३८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३५ नायिका के भेद गारत गुलाबी रंग भयो गोरे गालन को सौह परी जाय मानो औचक संपेला के। ढारि ढारि ऑसुन की धार दोऊ आँखिन सों निदत बिचार 'हरिऔध' अवहेला के। बेला बीती बूझिकै बेहाल अलवेली भई अलवेले हाथन बिलोकि फूल वेला के ॥१॥ बरवा- आयो प्रिय अमरैया गैयन साथ । पहुंचि न सकति लुगैया मीजति हाथ ॥२॥ चिलखति खरी गुजरिया विहरति नाहि । निरखि गुलाब - गजरवा प्रिय-गर माँहि ॥ ३॥ ६-मुदिता वांछित की अकस्मात् प्राप्ति से आन दित होनेवाली परकीया को मुदिता कहते है। - कवित्त- अधियारी कुहू की डरारी-कारी-रैन मॉहि जामैं घिरी भारी-घटा पवन - प्रसंग ते । दामिनी दिपे पै भौन बार पै बिलोक्यो बाल मंद-गौन - वारो - प्यारो मंजुल-मतंग ते । 'हरिऔध' मोहि मद-प्याला सी पिअन लागी ज्वाला हूँ कढ़न लागी बाला - अंग अंग ते। उरज-उतंग ते अनंग रंग पैठी जाति ऐन बैठी ऐंठी जाति आनँद - उमंग ते ॥१॥