पृष्ठ:रसकलस.djvu/४०५

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रसकलस दोहा- सुखित सकल को करि वनत सुर - समान नर कौन । वसुधा पै बरसत सुधा सरसत - ससि - सम जौन ।। ३ ।। २-धीरोद्धत अभिमानी, शूर, चपल, मायावी, प्रचट, दुदीत कोपन स्वभाव और अपनी प्रशंसा के पुल बाँधनेवाला पुरुप धीरोद्धत कहलाता है । उदाहरण कवित्त- मैं हौं महा-मानी करि पैहों का न माया क्रिये, घाधा बोध भये दोरि वॉधि देही विधि को। विगरे विदारि देहौं बड - वड - बीरन की तमके नसेही सारी - साधना की सिधिको । 'हरिऔध' कोप किये लोप केही लोकन को पावक ते पूरि देहौं पुहुमी-परिधि को । ककुम के वारन की बोटी वोटी काटि दहौं गिरि को उपाटि देही पाटि देहौ निधि को ।।१।। दोहा- मोहि मुदित दिनमनि करत मसि मेवत मब भॉति । मेरे पद - नख मरिम है नभ - तल - तारक - पॉति ॥ २॥ मायामय हूँ होत है जा माया लग्वि मो मम जग में दूसरी मायावी है कौन ॥ ३॥ धनु ल धावत मोहि लग्नि कोन न होत अधीर । घरकन घरनी • घग्न • र धरती धरति न वीर ॥४॥ मौन । 1