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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४०८

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नायक 'हरिऔध' उदित - उदारता -निकेतन है चोखी- चातुरी को चित-चारुता कसति है। मानस - महत्ता ते है महति रहती मति उर मैं सतोगुन की सत्ता बिलसति है ॥२॥ दोहा- निज - गौरव हित नहिं हरत पर के गौरव कॉहि । जनता को हित वसत है सुजन - सुजनता माँहि ।। ३ ।। जो जन होत अधीर नहिं परे भीर पर भीर । हरत रहत पर - पीर जो है सोई बर - बीर ।।४।। कौन सुजन ताके सरिस अहै अवनि में आन । जो अपने सनमान सम समझत पर - सनमान ।। ५॥ निरखे हूँ निरखत नहीं जन - अपराधन कॉहिं । छमावान जैसी छमा है छमाहुँ है छमाहुँ मैं नॉहिं ।। ६ ।। बहु-असरस जा मैं परे परम - सरस है होत । सुजन - तरल - उर मैं बहत ऐसो रस को सोत ॥ ७ ॥ नायकों के साविक गुण नायकों के सात्विक गुण आठ हैं। वे निम्नलिखित हैं- १-शोभा, २-विलास, ३-माधुर्य, ४-गाम्भीर्य, ५-धैर्य, ६-तेज, ७-ललित और-औदार्य। शोमा शूरता, चातुरी, सत्य, उत्साह, अनुरागिता, नीच में घृणा और उच्च में स्पर्धा उत्पन्न करनेवाले अन्तःकरण के धर्म को शोभा कहते हैं