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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४१०

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नायक विलास विलासमान की दृष्टि धीर, गति विचित्र और वचनावली मुसकुराहट लिए होती है, तथा भाव में गर्व का विकास होता है । उदाहरण कवित्त- गौरवित-गति ते मृगाधिप को मान हरि अोज - मंजु - गिरि पै बिहरि बिलसत है। भरत दिगंत मैं दिवाकर समान तेज मुख मैं प्रभाव - पूत - बचन वसत है। 'हरिऔध' सबल-बिलास को बिकास बनि कंज लौं बिभूति - सरसी मैं विकसत है। धीरता - बलित-चितवन ते चकित करि मद - भरो - बीर मंद मद बिहॅसत है ।।१।। दोहा- पर - अपकार उरन मैं उपजावति बहु - पीर बीर - धीर - चितवन करति पापिन कॉहिं अधीर ॥२॥ भीर परति है कुजन पै निरखि वदन गंभीर । बनति रहति है अगति- गति धीर -बीर-गति- धीर ।।३।। लोक - बिजयिनी - बीरता चलति बीर को घेरि । अरि - कुरंग थहरत रहत केहरि सी गति हेरि ||४|| बिदित करति है बीर की बिभुता सबल - सरीर । प्रकटति चित - गंभीरता गिरा - मेघ - गंभीर ।।५।। माधुर्य आकुल होने के कारणो के उपस्थित होने पर भी आकुल न बनना माधुर्य कहलाता है।