पृष्ठ:रसकलस.djvu/४२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७५ नायक कवित्त- कैसहूँ जो आपनो कियो है मन मेरी आली नीकी करै ताको जो सँवाचि अव फेरै ना। रार जो मची है मेरे नैन हिय प्रानन मैं भलो अहै ताको जो विवेचि तू निवेरै ना। 'हरिऔध' याहू को न मन में कछू है पानि मोको कवौं प्यारे प्राननाथ कहि टेरै ना। सॉची कहै होत बार बार बलिहारी अरी धॉके नैनवारी क्यो हमारी ओर हेरै ना ।। १ ।। शठ छल-पूर्वक अपराध गोपन करने में निपुण पति को शठ कहते हैं। कवित्त--- भौहैं जनि तानै रोस मन मैं न आने हौ कियो नमनमानी मेरी वातन मै कान है। अखियाँ ललौहैं नाहि नीर बरसौहैं भई कहाँ करि सौहैं मेरी पति तू न जान दें। 'हरिऔध' बापुरो न जानै छल छदै ताहि क्यों न सनमान निज अंक मॉहि थान मति कलपावै मेरे प्रान कही मेरी मान एरी प्रानप्यारी मोको हसि कर पान दै ।। १ ।। ht अनभिझ जिसको शृंगार रस की सरस क्रियाओं का यथार्थ ज्ञान नहीं होता ऐसे असमर्थ पुरुष को अनभिज्ञ कहते हैं।