१८७ उद्दीपन-विभाव जासु बचाये पति रही क्यों न ताहि पतियाहिं। तासो अंतर कौन जो अंतर राखत नॉहि ।। २॥ ४--चाहिरंगिणी वाहर की जो अनेक बातों से अभिज्ञ होती है और अपना कार्य स्पष्ट बाते कहकर करती है उसको बहिगिणी सखी कहते हैं। उदाहरण दोहा- रीमि रिझावति ही रहति मंद - मंद मुसुकाति । बतिया कहि कहि रम-भरी रस बरसत ही जाति ।। १ ।। साध पुजावति सुख लहति विलसति भरे - उमंग । गरव गहेली हूँ सधति सधी सहेली संग ।।२।। मंडन नायिका को वसन-आभूषणों से सजाना, उसके बालों को गूंध देना इत्यादि मडन कहलाता है। दोहा- सोहत तव गर मैं रहै मो मन वनै निहाल । मोहन को मोहत रहै मंजु महमही माल ॥ १ ॥ पहिराई चुनि चूनरी सजे सुहावन - साज। अंजन - रंजित हग किये पिय - मन - रंजन काज ॥२॥ शिक्षा सखी शिक्षा संबधिनी जो बात कहती है उसे शिक्षा कहते हैं। वित्त- दीपक-सिखा-सी-दुति-खासी देह की दिखाय सौतिन को दुसह-दवा सी दहिबो करो। भाव - भरी इन अॅखियान सो चित के मनमोहन-चितै को चोरि लीवो चहियो करो।
पृष्ठ:रसकलस.djvu/४३४
दिखावट