पृष्ठ:रसकलस.djvu/४३९

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उसकलस १६२ निंदा नायक अथवा नायिका की निंदा करके दूती का कार्य साधन करना निंदा कहलाता है। उदाहरण उत्तमा दोहा- सुरसरि • धारा मैं परति वैतरनी को बारि । कबहूँ निंदित जो बनति परम अनिदित नारि ॥ १ ॥ मध्यमा कवित्त- कहा कलपाये ऐमी कलप - लता सी हूँ को जीवन -स्वरूप जाके जग मैं जिये के हो। भलो कौन भाखि है रखे ते भेद तासों तुम एक फल जाके नाना - साधन किये के हो । 'हरिऔध' कहत बने ना पै कहेई बने खीन लखि ताको जाके जनम लिये के हो। कृटि कूटि कपट तिहारे पोर पोर भरी निपट कठोर तुम साँवरे हिये के हो ॥१॥ दोहा- हौं निदत भूले नहीं है निंदित तव चाल । क्यो एनी - नैनी कहे परति तनेनी वाल ।। २॥