यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२६३ उद्दीपन-विभाव अधमा दोहा- भाल-अंक को कहि बुरो भौंह करति कत वंक । तू है नॉहि कलंकिनी तो कत लग्यो कलंक ॥१॥ प्रबोध स्त्री अथवा पुरुष का प्रबोध करके अर्थात् उन्हे समझा बुझाकर जब दूती अपना कार्य साधन करती है तब वह प्रबोध कहलाता है। उदाहरण उत्तमा दोहा- - . सुख - रजनी ऐहै वहुरि नसि जैहैं सव संक । विकसित हैहै उर - कुमुद लखि पिय-बदन-मयंक ॥१॥ मध्यमा दोहा- परी जाति कत दूवरी कत तव तन पियरात । धीर धरे ही भावती दुख के दिवस सिरात ।। १ ।। अधमा दोहा- वे सोअत सुख-नींद हैं तू रोअति दिन - राति । बे उत आकुल हैं न तो तू इत कत अकुलाति ॥ १ ॥ संघट्टन नायक और नायिका के परस्पर सम्मिलन का साधन दृती की जिस क्रिया द्वारा होता है उसे संघटन कहते हैं। --