पृष्ठ:रसकलस.djvu/४४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रसकलस १६४ उदाहरण उत्तमा कवित्त- गति-मति मान-अपमान की कथान भूलि तेरे गुन-गान ही की बिग्द लियो है री। दिन - रैन तेरे नैन - बैन ही की बात कहै तेरी तीखी - सैनन पै मन हूँ दियो है री। रटनि लगी है आठो जाम तेरे नाम ही की तेरो ही भयो सो 'हरिऔध' को हियो है री। आली तूने लोनो लानो सोना सों सरीर लहि सहज-सलोनो हूँ पै टोनो सो कियो है री ॥१॥ कलित - कपोलन पै अलक लुरी हैं मंजु सुललित - आभा लमी अधर - तमोर की। हियरो हरनवारे हिय पै फवे हैं हार अगन-प्रभा है आछे - भूखन-अथोर की। 'हरिऔध' वेस-बसनादिक बखाने बन आने वन उर मैं निकाई नंन - कोर की। एरी बीर काकी मति बावरी बनी है नॉहिं सु - छवि विलोकि वॉकी नवल-किसोर की ।।२।। मध्यमा सवैया- जीवन है सिगरे जग को लखि जीवन तेरे ही आनन-ओर है। प्रान है कामिनि को 'हरिऔध' पै हेन्यो करै तव-ऑखिन-कोर है। भाग है ऐसो तिहारो भटू इतनी कत कीजत मान - मरोर है। "है घन-म्याम पै तेरो पपीहरा है ब्रज-चद् पे तेरो चकोर है" ॥१॥