पृष्ठ:रसकलस.djvu/४७३

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रसकलस २२६ उदाहरण सवैया- ऊँची अटा पै अकेली हुती अलवेली खरी करि रूप-उजारो। एडिन छै छहरात हुतो 'हरिऔध' छुट्यो कच घू घुर-वारो । औचक आइ दोऊ अखियाँ इतनेहि मैं मंदि लियो पिय-प्यारो। भेद-भरो मन ऊबि छरो गयो सेद मैं डूवि गयो तन सारो ।।१।। रोमांच किसी कारण रोम ना खड़ा हो जाना रोमांच कहलाता है। उदाहरण सवैया- बूझि भली-विध कीजै कछू अलि काज उतावली के नहिं नीके । चौगुनी-चचल होति चले 'हरिऔध' कथानक केलि-थली के। धीर धरे हूँ वनेगी न बीर जो कामिनी क्यों हूँ परी कर पी के । नेक हो नैन लरे सिगरे-तन-रोम खरे ह गये रमनी के ॥१॥ कंप शीत, कोप और भय आदि से अकस्मात् अग अग के काँप उठने को कप कहते हैं। उदाहरण सवैया- संग सहेलिन को गयो छूटि के वानर पीयूँ पो बन केरो। तोको अचानक आइ कपूत कोऊ कै कलेस दियो बहुतेरो कै यह पूस को सीरो-समीर सताइ गयो 'हरिऔध' घनेरो। कौन सी 1 भई बतराय दै जो इतनो तन काँपत तेरो ।।१।।