पृष्ठ:रसकलस.djvu/५१९

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रसकलस उदाहरण दिनों का फेर कवित्त- रमा - कमनीय - कर - लालित रहे जे लोक तिनके अमोल - लाल अन्न को ललात हैं। सुंदर सँवारे जाके सुर से सदन हुते धरा परे ताके मैन - तारे दिखरात हैं। 'हरिऔध' फूटे भाग भुवनाभिरामन के भोरे - भोरे - तात भूमि-भार भये जात हैं । जाको बल-विभव बिलोकि लोक - पाल भूले ताके कुल - बालक बलूले लौं विलात हैं ।। १ ।। पल पल पैहै आज तिनको पतन होत देव-विभवों ते भौन जिनके भरे रहे। ताको तात पलत चबाइ तरु - पातन को परे जो सदेव कल्प - पादप तरे रहे। 'हरिऔध' तेई अधकूप पाहुने हैं बने भूप है स - भीत द्वारे जिनके खरे रहे । ताको देखि आसन तजत ना गवासन हूँ सासन ते जाके पाकसासन डरे रहे ॥२॥ धन के कुबेर गये बीते हैं बराक हूँ ते सूखि सूखि सुर-तरु बने हैं तुच्छ तिनके । साज - बाज जिनको धराधिप ते दूनो हुती तिनके गिरों हैं रोम रोम पास रिन के।