पृष्ठ:रसकलस.djvu/५१८

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२७१ रस निरूपण करुण रस स्थायी भाव-शोक देवता-यमराज वर्ण-कपोतचित्रित आलंबन प्रिय-बधु, समाज, देश की अपार हानि, स्वजनचंद का मरण, शोचनीय व्यक्ति, दुःखदग्ध प्राणिसमूह श्रादि । उद्दीपन दाह कर्म, प्राणिसमूह की विविध यातना, शोचनीय अथवा दुःख-जनक- दशा का दर्शन, समाज और देश-पतन का निरीक्षण श्रादि । अनुभाव भूमि-पतन, रोदन, भाग्यनिदा, दुःखप्रदर्शन, विवर्णता, उच्छ्वास, निःश्वास, स्तम, प्रलाप आदि। संचारी भाव निर्वेद, मोह, व्याधि, ग्लानि, स्मृति, विषाद, जड़ता, उन्माद, चिता आदि । विशेष इष्ट के नाश और अनिष्ट की परिपुष्टता अथवा आविर्भाव से इस रस की उत्पति होती है। किसी किसी ने वरुण को इस रस का देवता माना है।