सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रसकलस.djvu/५२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८१ रस निरूपण अद्भुत स्थायी भाव-विस्मय अथवा आश्चर्य देवता A ब्रह्मा वर्ण-पीत आलंबन अलौकिक-वस्तु असमवित-व्यापार लोकोत्तर-कार्यकलाप विचित्र दृश्य आदि । उद्दीपन लोक-चकितकर-कार्य-कलाप, वस्तु और व्यापारों का दर्शन, गुण-श्रवण, महिमा-निरूपण, वैचित्र्य-अवलोकन आदि । अनुभाव स्तभ, स्वेद, रोमाच, गद्गद स्वर, सभ्रम, नेत्रविकास आदि । . संचारी भाव वितर्क, आवेग, भ्रांति, हर्ष, औत्सुक्य, चाचल्य आदि । विशेष किसी किसी ने इस रस को देवता गधर्व माना है। ३३