पृष्ठ:रसकलस.djvu/५८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रसकलस ३३६ रौद्र , स्थायी भाव-क्रोध देवता-रुद्र वर्ण-अरुण अथवा रक्त आलवन-शत्रु अथवा वह पुरुष जो जाति और देश का द्रोही हो- कदाचारी और कपटाचारी व्यक्ति आदि- अनुभाव-भ्रूभंग, अधरदशन, ताल ठोंकना, डाँटना, ललकारना, रोमाच, स्वेद, मद, परुष-भाषण आदि- सचारी भाव-गर्व, चपलता, मोह, अमर्ष, उग्रता, आवेग आदि- उद्दीपन-शत्रु की चेष्टायें और उसका व्यवहार, उसका आस्फालन, अत्र-शस्त्र प्रहार और आक्रोश देशद्रोही, जाति-शत्रु और कदाचारी पुरुषों का कार्य-कलाप और उनकी कूट नोति आदि- विशेषता इस रस में उद्दीत क्रोध की प्रबलता और पुष्टता होती है। उदाहरण अहंभाव कवित्त- कब लौं अभाग तू बनाइहै अभागो मोहि जो न भागिहै तो तोको पौरुख दिखैहौं मैं । काढ़ि हौं कचूमर पकरि मुँह लाल कहीं चाल चलिहै तो वाल वाल बीनि लैहौं मैं ।