पृष्ठ:रसकलस.djvu/६०

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- कुछ प्रमाण लीजिये-केवल विभाव द्वारा रस की अभिव्यक्ति- दमदम दमकत दामिनी घहरत नभ घनघोर । मान करत कत मानिनो मोर मचावत सोर ॥१॥ इस दोहे मे उद्दीपन विभाव का वर्णन है। न तो संचारी का है, न अनुभावो का । परंतु मानिनी का मानयुक्त होना, उसके हृदय का सामर्प होना सूचित करता है, जो एक संचारी भाव है। जब वह मान दशा में है तो उसकी भौहें अवश्य चढ़ी होगी, मुंह भी निरसंदेह विगड़ा होगा, इसलिये अनुभाव भी उसमे मिले और तीनो के आधार से ही रस की सिद्धि हुई। केवल अनुभाव द्वारा रसविकास- टपटप टपकत सेदकन अंग अंग यहरात । नीरजनयनी नयन मैं काहे नीर लखात ||२|| म्वेद विदु का टपकना. अंगो का कम्पित होना, ऑखो मे जल आना अनुभाव है, और इन्हीं का वर्णन दोहे में हैं। किंतु कारण अप्रकट है, किसी विभाव के कारण ही ऐसा हो रहा है, चाहे वह आलंबन हो अथवा उद्दीपन, अतण्य अनुभावों द्वारा ही विभाव की सूचना मिल रही है। किसी श्रम, आवेग. चिंता और शंका के द्वारा ही ऐसी दशा होने की संभावना है, अतएव संचारी का उद्बोध भी उससे हो रहा है। केवल संचारी द्वारा रस का आविर्भाव- करति सुधारस पानसी रत यस है सरसाति । 'कत गवदगतिगामिनी उमगति आवति जाति ॥३॥ । इस दोहे मे हर्प और औत्सुक्य पूर्ण मात्रा में मौजूद हैं, जो कि संचारी हैं। वे ही उस विभाव को और भी संकेत कर रहे हैं जो उनके आधार हैं । उमग-उमग कर पाना-जाना अनुभाव के अग्रदूत है । इन उदाहरणो मे यह स्पष्ट है कि विभाव. अनुभाव और संचारी भाव तीनों के द्वारा ही रस की उत्पत्ति होती है, किसी एक के द्वारा नहीं।