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पृष्ठ:रसकलस.djvu/९८

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८१ हिनकर विचारो का प्रचार और पितृ-ऋण से उद्धार पान का उद्देश्य है, वश वृद्धि, एव देश कालानुसार कुल की शिष्टजनानुमोदित मर्यादा और परंपरा का पालन । मनुष्य का यह प्रधान कार्य है कि जब तक वह जीवित रहे तब तक इन महान् कर्त्तव्य कर्मा को स्वयं करता रहे और अपने पीछे अपना एक ऐसा प्रतिनिधि छोड़ जावे. जो इन शुभ कार्यो को यथापूर्व चलाता रहे । यह बात विना पुत्र उत्पन्न किये नहीं प्राप्त हो सकती, इसलिये शास्त्रो मे संतानोत्पत्ति का इतना महत्त्व है। मतानोत्पत्ति बिना स्त्री-पुरुप सम्मिलन के नहीं हो सकता, इस लिये उनका संयोग कितना पुनीत और महान कार्य है। आशा है, यह बात भलीभोति स्पष्ट हो गई । एक अंगरेजी विद्वान भी लगभग ये ही बात कहते हैं, देखिये- "He is no longer to live for himself, but for luis wife and children and in a larger sense for his descendants- 1or the good of the race He is to continue by transmitting buonsell, that life may reniain when he is gone what lie does involves the interest of his wife and of those who are to come after him. Love is to conquer selfishness. He is to rise abore lumself and the present good and future happin- ess of others are to constitute his well-being.' 'विवाह के बाद पुरुप की जीवन-यात्रा केवल अपने लिये नहीं होनी. बरन अपनी बी और वो के लिये अथवा व्यापक अर्थ में यो कहिये कि जाति-हित कीष्टि से अपने उत्तराधिकारियों के लिये है। अपनी पात्मीयता को वह दूसरी को इस प्रकार में सौंपता है कि मर जाने पर भी वा जीविन रहता है। उसके प्रत्येक काम में उनकी पनी तथा