पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/१२६

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रसज्ञ-रंजन
 


पृष्ठ ८०—चन्द्रमौलि = शिवजी (चन्द्रमा जिनके मस्तक में है)। रागान्ध = प्रेम में अन्धा। गतागत = आना-जाना, घूमना। स्पर्द्धा = ईर्ष्या। विलासिनी = स्त्री। पाणिपीडन = विवाह। वैमानिक = विमान उठाने वाला। मधु = वसन्त। माधवी = बासन्ती नाम की लता।

पृष्ठ ८१ = कम्बुकण्ठ = शंख के समान सुडौल गरदन। हृदयवृत्ति = हृदय का भाव (यहा प्रेम)। मुक्तलता = हार। कंटकित = पुलकित। पंचशायक = कामदेव। उन्मज्जित = बाहर निकला, उठा। निर्व्याज = स्वार्थ और छल से रहित। चिन्तामणि = वह स्वर्गीय मणि जो विचारे हुए पदार्थ को दे देती है। सायन्तनी = संध्या के समय की।

पृष्ठ ८२—नीर-क्षीर-विवेक = दूध और पानी को अलग-अलग करने का ज्ञान

पृष्ठ ८३—प्रवाद = अफवाह। जागरूक = जगी हुई, तीव्र।

पृष्ठ ८७—बिस = कमलनाल। जलरूह = जल में उत्पन्न होने वाले कमलादि।

पृष्ठ ८९—उच्छृङ्खल = निरंकुश, मनमानी करने वाले। क्रौंच = हंस के समान एक पक्षी विशेष। मानिषाद = आदि मवि वाल्मीकि के मुख से करुणावश निकला हुआ सर्व प्रथम श्लोक जिसका भाव है कि हे निषाद (भील) कामोन्मत्त इस क्रौंच के जोड़े में से एक को तूने क्यों मारा, ऐसा करने से तेरी प्रतिष्ठा हमेशा को चली जायगी। सरस्वती = वाणी। विधुरा = दुखी, वियोगिनी। अल्पादल्पतरा समवेदना = थोड़ी-सी भी सहानुभूति

पृष्ठ ९०—गेय तथा आलेख्य = गाने और लिखे जाने योग्य। पक्षपात-कार्पण्य = सहानुभूति की कमी। श्रुतिसुखद = सुनने मे मधुर। शीतातप = ठण्ड और धूप। भवतु नाम = अस्तु जो कुछ हो। हा हत विधि … सि = हाय दुर्भागनी उर्म्मिला अत्यन्त दयालु वाल्मीकि ने भी तुझे भुला दिया। दुःखाश्रुमोचन = दुख से आसू बहाना। राजान्त पुर = रनिवास। नन्दन वन = इन्द्र का उद्यान, यहां हरे-भरे से तात्पर्य है।

पृष्ठ ९१—छिन्नमूल = जड़ से कटी हुई। बचने दरिद्रता = वर्णन करने योग्य शब्दों की कमी। दु:खोदधि = दुख का समुद्र। आत्मोत्सर्ग =