पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/१२५

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वाणी = जिसके कहने वाला दिखाई नहीं देता। आकर्णकृष्ट = कानों तक खींचा हुआ।

पृष्ठ ७३—आविर्भाव = उत्पत्ति। भावनाएँ = कल्पनाएँ।

पृष्ठ ७४—किन्नरी = एक देवयोनि विशेष की स्त्री। अनन्य साधारण—अनुपम।

पृष्ठ ७५—स्तम्भित = आश्चर्यचकित। कामेश्वर शास्त्री = कामदेव। अथवा काम शास्त्र में प्रवीण कल्पित शास्त्री का नाम।

पृष्ठ ७६—तिलोत्तमा, सुलोचना आदि अप्सरायें हैं। विभ्रम = विलास; हाव-भाव । निष्प्रभ = शोभाहीन। प्राङ्गण = आँगन। क्रीड़ाहंस = मन बहलाव के लिए पाला हुआ हंस।

पृष्ठ ७७—लवलीलता = नेवाड़ी। हरिणशायक = हिरन का छोटा बच्चा। अतर्कित………पिथराई = वह पीलापन जिसके लिये कोई कारण नहीं प्रतीत होता।

पृष्ट ७८—चित्र-फलक = तस्वीर खींचने का पट या तख्ता। त्रिलोकी-तिलक = तीनों लोकों में श्रेष्ठ। उशीर = खस। पर ऐसा……हैं = परन्तु मुँह नीचा करने से हृदयस्थित आभूषणों में चन्द्रमा की परछाहीं दीख पड़ती है। कङ्कणों के……सकेंगी = हाथ के आभूषण गिर तों दमयन्ती की क्षीणता के कारण रहे हैं, परन्तु कवि की उत्पेक्षा है कि मानों दमयन्ती को अपना भार सहने योग्य न समझ कर स्वयं ही चले जारहे हैं।

पृष्ठ ७९—चन्दनचर्चित मणिमंडित = चन्दन तथा मणि आदि शीतल पदार्थों से युक्त। मरीची = किरण। उपचार = इलाज। मार्तण्ड = सूर्य। तब यदि……बात है = जब देवता तक तेरा ध्यान करते हैं तो फिर एक मनुष्य को, जिसको तू स्वयं चाहे, तुझे न प्राप्त होना आश्चर्य ही का विषय है। कालिदास ने भी ऐसा ही कहा है—

"कमला मिलै कि ना मिलै ताहि चहत जो कोई।
पै जाको कमला चहै सो दुर्लभ क्यों होई॥"

(शकुन्तला)