पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४
रसज्ञ रञ्जन
 

हिन्दी के जितने कवि प्रसिद्ध हैं उन्होंने देश,काल, अवस्था और पात्र के अनुमार ही कविता की है। दूसरे देशों और दूसरी भापाओ के कवियो का नाम लेने की यहां आवश्यकता नही;क्योकि हिन्दी के पूर्ववर्ती कवियों ने, समय-समय पर, अपने कर्तव्य को समझा है और उसका पालन भी किया है। राजा शिवप्रसाद-सदृश इतिहासकारों ने भी अवतार का काम किया है, यद्यपि उनके विचारों को लोग मानते नहीं। सारांश यह कि कवियो को ऐसा काम करना पड़ता है वे स्वभाव ही से ऐमा करते है कि-संसार का कल्याण हो और इस प्रकार उनका नाम आप ही आप अमर हो जाय। भूषण के समान कवियो ने तो राजनीतिक आन्दोलन तक उपस्थित कर दिया है। “पूर्ण" कवि ने हमें यह उपदेश दिया है कि जो लोग बोलचाल की भापा से किसी प्रकार अप्रसन्न हैं वे भी अपनी पुरानी व्रज ( कविता) की बोली को बिना तोड़े-मरोड़े काम मे ला सकते हैं, और यदि वे चाहे तो बोलचालको भाषा मे भी कविता कर सकते है। सारांश यह कि कविता लिखते समय कवि के सामने एक ऊंचा उद्दय। अवश्य रहना चाहिये। केवल कविता ही के लिये कविता करना एक तमाशा है। हिन्दी मे कविता-सम्बन्धी इस प्रकार के लेख पढकर बाहर के लोग यह अनुमान कर सकते हैं कि कदाचित हिन्दी के कवि अपना कर्त्तव्य नहीं जानते; नही तो उनके लिये ऐसा लेख न लिखा जाता। यदि कोई मराठी या बगला के समाचार-पत्र या मासिक पत्र पढ़े, तो उसे उनमें से लेख न मिलेंगे। ऐसे लेख उन भाषाओं में कम से कस चालीस वर्ष पहिले निकल चुके हैं। और उन लेखो के अतुमार उन भापायो की कविता इतने समय में इतनी ऊंची हो गई है कि समालोचकों के लिये जन्म भर विचार करने की सामग्री तैयार है। भापा या साहित्य की जब जैसी अवस्था होती है, तब उसमे उसी प्रकार के लेख निकलते