पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१-कवि-कर्त्तव्य
२५
 

है। हम यहाँ पर इस विषय का एक उदाहरण देते है। एक बार "छत्तीसगढ़-मित्र' में हिन्दी व्याकरण के विषय में कुछ लेख्न निकले थे। उस पर एक महाराष्ट्र सज्जन ने बम्बई के सम्पादक से पूछा कि क्या हिन्दी में भी व्याकरण नहीं? इस पर सुनने मे आया कि सम्पादक ने उनको यह उत्तर दिया कि और-और भाषाओके समान हिन्दीमे कोई व्याकरण है। परन्तु इस विपय का निरूपण विदेशियोने किया है। हिन्दुस्तानी लोग न उसे खोज सके है और न खोज हो जाने पर भी उसकी ओर ध्यान देते है।

कवि की कल्पना-शक्ति तीव्र होती है। इस कल्पना शक्ति के द्वारा वह कठिन वातो को ऐसे अनोखे ढङ्ग से सब के सामने रखता है कि वे सहज ही समझ मे आजाती है। इसी शक्ति से वह अनजाने हुये पदार्थों या दृश्यो का चित्र इतना मनोहर खीचता है कि पढ़ने या सुननेवाले एकाग्रचित्त हो जाते है और उस वात पर प्रेम पूर्वक विचार करत है। फिर कवि अपने अवतोकन और अपनी कल्पना से ऐसी शिक्षा देता है कि वह न तो आज्ञा का रूप धारण करती है, और न अपना स्वाभाविक रूखा रन ही प्रकट करती है, किन्तु सीतर ही भीतर मन को उकसा देती है। ताजमहल का वर्णन करते समय कवि इस बात पर ध्यान न देगा कि यह किस सन् मे बना था, इसकी लम्बाई-चौड़ाई कितनी है, या इसका पत्थर कहाँ से आया है। इसारत को देखकर उसका मन कदाचित् उसके मीनार से भी ऊँचा चढ़ जायगा और वह उस समय की कल्पना करने लगेगा जब बादशाहकी बेगम,मरते. समय रोजे की वसीयत कर रही थी। उसके सन में पुराने और नये समय के मिलान का भी चित्र खिच जायगा और वह समय के फेर की घटनाओ को सोचने लगेगा। मनोहर वर्णन और शिक्षा के साथ-साथ कवि अपने शब्द और वाक्य भी ऐसे मनोहर बनाता है कि पढ़ने वाले के आनन्द की सीमा नही