रहती। कविता लिखते समय जो-जो भाव कविके हृदय में उदित होते हैं, वही भाव पढ़ने वाले के हृदय में उत्पन्न हो सकते हैं। इसके लिये पढ़ने वाला सहृदय होना चाहिये, नहीं तो भैस के आगे बीन बजने लगेगी। यदि स्वतः कवि में सहृदयता न हो तो फिर उसका श्रम ही वृथा है। मनोविज्ञानी लोग कदाचित किसी समय हमको यह बता सकेंगे कि मनोविकार प्रकट करने के लिए छन्द ही का उपयोग क्यो होता है? गद्य मे कोई-कोई लेखक—विशेषकर उपन्यास लेखक—ऐसा मनोहर वर्णन करते है और ऐसे भाव प्रकट करते हैं कि उनका गद्य पद्य हो जाता है। जोहो अभी तो कवि लोग ही विशेषकर यह काम करते हैं और उसके लिए छन्द काम में लाते है।
आजकल हिन्दी संक्रान्ति की अवस्था में है। हिन्दी कवि का कर्त्तव्य यह है कि वह लोगों की रुचि का विचार रख कर अपनी कविता ऐसी सहज और मनोहर रचे कि साधारण पढ़े-लिखे लोगों में भी पुरानी कविता के साथ-साथ नई कविता पढ़ने का अनुराग उत्पन्न हो जाय। पढ़नेवालोके मन में नई-नई उपमाओं को, नये-नये शब्दों को और नए-नए विचारों को समझने की योग्यता उत्पन्न करना कवि ही का कर्त्तव्य है। जब लोगों का झुकाव इस ओर होने लगे तब, समय-समय पर,कल्पित अथवा सत्य आख्यानों द्वारा सामाजिक, नैतिक और धार्मिक विषयों की मनोहर शिक्षा दें। जब जो विषय उसके अवलोकन में आवे, तभी उस पर अपनी स्वाभाविक शक्ति से कविता लिखकर लोगो को परोक्ष रूप से सचेत करे। कविता के प्रभाव का एक छोटा-सा उदाहरण सुनिए। पद्माकर कवि के घराने के लोगों में विवाह के समय कवित्त पढ़ने की चाल हैं। उनकी जाति के लोग कहते है कि यह चाल पद्माकर के समय में चली है और वह अब तक चली जाती है। क्या यह बात आज-