पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/२८

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२-कवि बनने के लिए सापेक्ष साधन

जकल हिन्दी कवियो ने बड़ा जोर पकड़ा है।या जिधर देखिए उधर कवि ही कवि। जहाँ देखिए वहाँ कविता ही कविता। कवि बनाने के कारखाने भी रात--दिन जारी है। कोइ कहता है, हमारे पिङ्गल के प्रचार से गॉव-गॉव मे कवि हो सकते है। कोई कहता है, हमारा काव्य-कल्पनुस पढ़ लेने से सैकडो कालिदास पैदा होसकते है। कोई कहता है,हसारा काव्य-मारकर ही कवि वनने के लिए एक मात्र सावन है,उसकी एक ही झॉकी मनुष्य को कवित्व की प्राप्ति करा सकती है। कोई कहता है, हमारी लभा की दी हुई समस्याओ की पूर्तियों करने से अनेक व्यान और वाल्मीकि फिर जन्म ले सकते है। शायद इन्ही लोगो के उद्योग का फल है जो हिन्दी से याजकल इतने कवियो का एक ही साथ प्रादुर्भाव होगया है। पर, इन कविता कुबेरों के प्रादुर्भाव से लरस हदय सज्जन बहुत तङ्ग होरहे है। जो काम बहुत कठिन समझा गग है, वह इन कवियों के लिए खेल होरहा है। कविता करना अन्य लोग चाहे जैसा सहज समझ, हमे तो यह एक तरह दु.साध्य ही जान पड़ता है। अत्रता और अविवक के कारण कुछ दिन हसने भी तुकवन्दी का अभ्यास किया था। पर कुछ, स्मझ जाते ही हमने अपने को इस काम का अनधिकारी सममा। अतएव उस मार्ग से जाना ही प्रायः वन्द कर दिया।