पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/२९

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२-कवि वनने के लिए सापेक्ष साधन
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विक्रम के ग्यारहवे शतक में, काश्मीर मे, अनन्तदेव नामक एक राजा था। उनके शासन समय मे क्षेमेन्द्र नामक एक महा- कवि होगया है। वह बहुन, बहुश्रुज और बहुदर्शी विद्वान था। उसकी प्रतिभा बडी ही विलक्षण थी। उनकी बुद्धि इतनी व्यापक और सूक्ष्म थी कि प्रत्येक विषय उनके लिए हस्तामलकवत् था। उस,न मालूम, कितने ग्रथ बना डाले। उनसे से दस-बीस तो छप कर प्रकाशिन भी होगये है। अपने शिष्या की शिक्षा के लिए छोटे-छोटे ग्रन्थ तो हंसते-हँसते बना डालता था। जरा उसकी बुद्धि की व्यापकता तो देखिए। कभी तो आप वेदान्त पर ग्रन्थ लिखते थे, कभी कुट्टिनियो की लीला का उद्घाटन करने के लिए "समय-मातृका" निर्माण करते थे, कभी "दशा-वतार-चरित" लिखक विष्ण भगवान की लीला का वर्णन करते थे, कमी बोद्ध धर्म के तत्वों से भरा हुया महाकाव्य लिखते ६, कभी काव्य और छन्द शास्त्र पर प्रथ रचना करते थे और कसी कलावितान" बनान वैठ जाते थे। इसी स कहते हैं कि क्षेमेन्द्र को प्रातमा वडी प्रखर था। क्षेमेन्द्र का 'बोवि- सत्रावान कल्पलता, नासक ग्रथ एक अपूर्व काव्य है। उसकी भाषा पाजल और भाव तथा कवित्व बहुत मनोहारी है। इस ग्रथ का एक निव्वतीय अनुवाद, अनी कुछ ही समय हुआ, प्राप्त हुआ है। इसे वगाल को हरायाटिक सोसाइटी प्रकाशित कर रही है। श्रीयुत शरच्चन्द्रदास इनके सम्पादक है।

क्षेन्द्रकवि ने 'कवि-काठाभरण' नाराका एक छोटाना प्रथ लिखा है। उसमें आपने बताया कि किन सावनो ले मनुष्य कवि होसकता है और किस तरह उसकी तुकबन्दा कविता कहलायी जाने योग्य होसकती है। क्षेमेन्द्र खुद भी महाकवि था। अतएव उसक बताये हुए साधन अवश्य ही बडे महत्व के होने चाहिए। यही समझकर हम अपने हिन्दीके कवियोके जानने