पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/३

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पहले संस्करण की
भूमिका

इस संग्रह में नौ लेख हैं। दो लेखों का विषय एक ही होने से उन दोनों का समावेश एक ही—अर्थात् पहिले ही—लेख में कर दिया गया है। इनमें से पहले पाँच लेखों में जिन बातों का वर्णन है, उनका सम्बन्ध कविता और कवि-कर्त्तव्य से है। इस समय, हिन्दी-भाषा के सौभाग्य से अनेक नये-नये कवि कविता करने लगे है। अतएव, आशा है, ये लेख औरों के लिये नहीं, तो विशेषत: कवियों और कविता-प्रेमियों के लिये अवश्य ही थोड़े-बहुत मनोरंजन का कारण होंगे। सातवें लेख में थोड़ी सी वैज्ञानिक अथवा ऐतिहासिक खोज होने पर भी, कवियों की हँस-सम्बन्धी समय-सिद्ध बातों पर विचार प्रकट किये गये है। रहे, अवशिष्ट तीन लेख। सो उनमे से एक में एक नवीन और दो में दो प्राचीन कवियों की रसवती कविता के बड़े ही हृदयहारी नमूने हैं। इस तरह, इस छोटी-सी पुस्तक में, हिन्दी के कवियों और अन्य सरस-हृदय सज्जनों के मनोविनोद की कुछ सामग्री प्रस्तुत की गई है।

इसमें से लेख नम्बर १[२] के लेखक श्रीयुत विद्यानाथ और नम्बर ८ के श्रीयुत भुजङ्गभूषण भट्टाचार्य हैं। इन पिछले महाशय ने अपना लेख लिखने में डाक्टर सर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के एक बँगला-लेख से कुछ सहायता ली है। नम्बर ७ लेख लिखने में उनके लेखक ने भी बाबू रामदास सेन के बँगला-निबन्ध के कुछ भाव ग्रहण किये हैं। इसलिये ये दोनों लेखक बँगला भाषा के इन विद्वानों के कृतज्ञ हैं।

दौलतपुर, रायबरेली महावीरप्रसाद द्विवेदी
११ अगस्त, १९२०