पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२-कवि बनने के लिये सापेक्ष साधन
३१
 

रण भी जानता हो, छन्दोग्रन्थों का भी पारगामी हो उसे गुरू बनाना चाहिए। अच्छे-अच्छे काव्यो को उसके मुख से सुनना चाहिए। गाथा, प्राकृत तथा अन्यान्य प्रान्तीय भापाओ के पद्यों का भी सावधान श्रवण करना चाहिए। चमत्कार-पूर्ण उक्तियोके विपय में चर्चा करनी चाहिए। प्रत्येक रस के आस्वादन में तन्मय होजाना चाहिए। जहाँ जिस गुण का प्रकर्प हो वहाँ अभिनन्दन करके आनन्दित होना चाहिए। विवेक बुद्धि द्वारा भले बुरे काव्य को पहिचानने की चेष्टा करनी चाहिए। ऐसा। करते-करते कुछ दिनों में कवित्व-शक्ति अंकुरित हो उठती है और उस शक्ति से सम्पन्न होने पर कविता करने की योग्यता आजाती है।

कृच्छु-साध्य जनो को चाहिए कि कालिदास आदि सत्क-वियों के सारे प्रवन्धो को आद्यन्त पढ़े और खूब विचार-पूर्वक पढ़ें। इतिहासो का भी अध्ययन करें। तार्किकों की उम्र-सन्धि से। 'दूर ही रहे। कविता के मधुर सौरभ को उससे नष्ट होने से बचाते रहे। अ यास के लिए कोई नया पद्य लिखे तो महाकवियों की शैली को र दा व्यान मे रक्खें। पुराने कवियो के श्लोकों के। पाद, पद और वाक्य आदि को निकाल कर उनकी जगह पर .अपने बनाये पाद, पद और वाक्य रक्खे। अभ्यास बढाने के लिए वाक्यार्थ-शून्य पद्य वनावे। कभी-कभी अन्य कवियों की रचना मे फेर-फार करके, कुछ अपना कुछ उनका रखकर, नूतन अर्थ का समावेश करने की चेष्टा करें।

जो लोग किसी बडे रोग से पीड़ित हैं,व्याकरण और तर्क शास्त्रके सतताभ्यास से जिनकी सहृदयता नष्ट होगयी है; अत- एव सुकवियों की कविता सुनने से भी जिन्हे कुछ भी आनन्द नहीं प्राप्त होता, उन्हें असाध्य समझना चाहिए। उनका हृदय पत्थरके समान कडा होजाता है, उनकी कोमलता बिलकुलही जाती रहती है।