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रसज्ञ रञ्जन
 

न तस्य वक्तृत्वसमुद्भव स्याच्छिक्षाविशेषैरपि सुप्रयुक्तैः । न गर्दभो गायति शिक्षितोऽपि सन्दर्शित पश्यति नार्कमन्धः ॥

उसे चाहे कैसा ही अच्छा गुरू क्यो न मिले और चाहे कितनी ही अच्छी शिक्षा क्यो न दी जाय वह कवि नहीं हो सकता । सिखलाने से भी क्या गधा कभी गीत गासकता है और हजार दके दिखलाने से भी क्या अन्धा कभी सूर्य को देख सकता है।

शिक्षा

कवित्व-शक्ति स्फुरित होजाने पर क्या करना चाहिए- किस तरह शिक्षा से उसको प्रखरता को बढ़ाना चाहिए-सो भी सुनिए--

प्राप्त-कवित्व-शक्ति कवि को चाहिए कि वह वृत्त पूरण करने का उद्योग करे, तपस्यापूर्ति करे, दूसरे की कविताओ का पाठ किया करे, काव्य क अङ्गो का ज्ञान प्राप्त करे, सत्कवियो की संगति करे महाकवियों के कामार्थ का विचार किया करे, प्रसन्न चित्त रहे, अच्छे वेश मे रहा करे, नाटको का अभिनय देखे. गाना सुनने का शौक रक्खे, लोकाचार का नान प्रान करे, इतिहास देखे, चित्रकारो के अच्छे-अच्छे चित्रों और शिल्पियो के अच्छे-अच्छे शिल्पकानों का अवलाकन करे वीरो का युद्ध देखे, श्मशान और अरण्य से घूम और आर्त्त तथा दुखी मनुष्यो के शोक प्रलाप पूर्ण वचन सुने । इन सब बातो से शिक्षा प्राप्त करना उनिक लिए बहुत जरूरी है।

परन्तु इतनी ही शिक्षा वस नही और भी उसे बहुत कुछ करना चाहिए, उसे मीठा ओर स्निग्ध भोजन करना चाहिए; धातुओ को सम रखना चाहिए; कभी शोक न करना चाहिए, दिनमे कुछ सो लेना चाहिए और थोड़ी रात रहे जाग कर अपनी