पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/३७

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२-कवि बनने के लिए सापेक्ष साधन
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इनसे काम पड़ता है । जो इनसे परिचय नही रखता वह बहुश्रुत नहीं हो सकता और विद्वानो की सभा में उसे आदर नहीं मिल सकता । प्राचीन कवियो के काव्यो को देखने से यह साफ़ मालूम होता है कि वे लोग अनेक शास्त्रोके तत्व से अभिज्ञ थे । इसका परिचय उन्होने जगह जगह पर दिया है।

क्षेमेन्द्र जब यह सब बाते लिख चुके तव उन्हे शायद सन्देह हुया कि उनके कथन को कोई असत्य या अतिशयोक्ति-पूर्ण व समझे । अतएव उन्होंने पुस्तकान्त मे लिखा है-

कृत्वा निश्चलदैवपौरुषमयोपायं प्रसूत्यै गिरां

मेन्द्रेण यदर्जितं शुभफलं तेनास्तु काव्यार्थिनात ।

निर्विघ्नप्रतिभा प्रभावशुभगा वाणी प्रमाणीकृता ।

सद्भिर्वाग्भवमन्त्रपूतवितत श्रोत्रामृतस्यन्दिनी ।।

अर्थात वाणी की उत्पत्ति के लिए मैंने देव और पौरुपमय दोनो उपायों को किया है और उनसे शुभ फल की प्राप्ति भी मुझे हुई है। मेरी अब यह कामना है कि उस फल की प्रेरणा या प्रसाद से कवि होने की इच्छा रखने वालों को भी पवित्र कविता करना आजाय। भगवान करे, क्षेमेन्द्र की शुभकामना हमारे वर्तमान कवियो के विपय मे भी फलवती हो। उनसे हमारी एक विनीत प्रार्थना है। वह यह कि यदि वे इस महाकवि के लिखे हुए कएठासरणको कण्ठ मे न धारण करें तो उसे फेक भी न दें और यदि यह कुछ उनसे न कह सके तो यह निबन्ध लिखकर हमने जो अपराध किया है उसे उदारतापूर्वक क्षमा ही करदें।