३—कवि और कविता
इस पुस्तक के आरम्भ में "कवि कर्त्तव्य" नाम का एक लेख आचुका है। उसमें यह दिखलाया गया है कि कविता को सरस, मनोरञ्जक और हृदय-ग्राहिणी बनाने के लिए कवि को किन-किन बातों का ख्याल रखना चाहिए। क्योकि अच्छी कविता लिखना सबका काम नहींपर इस बात का विचार आज-कल के कितने ही पद्य-रचना को बहुत कम करते हैं। उन्होंने कविता लिखना बहुत सहल काम समझ लिया है। वे शायद तुली हुई पक्तियों को ही कविता समझते है। यह भ्रम है। कविता एक चीज़ है, तुली हुई शब्द-स्थापना दूसरी चीज़।
उर्दू का साहित्य-समूह हिन्दी से बढ़ा चढ़ा है। इस बात को कबूल करना ही चाहिए। हिन्दी के हितैषियों को उचित है कि हिन्दी-साहित्य को उन्नत करके उनकी लाज़ रक्खे। उर्दू में इस समय अनेक विषयों के कितने ही ऐसे-ऐसे ग्रन्थ विद्यमान है जिनका नाम तक हिन्दी में नहीं। उर्दू-लेखकों में शम्स-उल-उलमा हाली, आजाद, जकाउल्ला, नज़ीर अहमद आदि की बराबरी करने वाला हिन्दी में शायद ही कोई हो। इन हित्य-सेवियों ने उर्दू के तानागार को खूब समृद्धशाली कर दिया है। हिन्दी वालों को चाहिए कि वे इन लोगों की पुस्तके पढ़ें और