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पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/४२

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रसज्ञ-रञ्जन
 

चित्त जितना पहले आकृष्ट होता था उतना अब नहीं होता। हजारों वर्ष से कविता का क्रम जारी है। जिन प्राकृतिक, बातों का वर्णन कवि करते है उनका वर्णन बहुत कुछ अब तक हो चुका। जो नये कवि होते है वे भी उलट फेर से प्रायः उन्हीं बातों का वर्णन करते है। इसीसे अब कविता कम हृदय-ग्राहिणी होती है।

संसार में जो बात जैसी देख पड़े कवि को उसे वैसा ही वर्णन करना चाहिये। उसके लिये किसी तरह की रोक या पाबन्दी का होना अच्छा नहीं। दवाब से कवि का जोश दब जाता है उसके मन से जो भाव आप ही आप पैदा होते है उन्हें जब वह निडर होकर अपनी कविता में प्रकट करता है तभी उसका असर लोगों पर पूरा-पूरा पड़ता है। बनावट से कविता बिगड़ जाती है। किसी राजा या किसी व्यक्ति विशेष के गुण दोषों को देख कर कवि के मन में जो भाव उद्भूत हों उन्हें यदि वह बेरोक टोक प्रकट करदे तो उसकी कविता हृदयद्रावक हुए बिना न रहे। परन्तु परतन्त्रता; या पुरस्कार-प्राप्ति या और किसी कारण से, सच बात कहने में किसी तरह की रुकावट पैदा हो जाने से यदि उसे अपने मन की बात कहने का साहस नहीं होता तो कविता का रस ज़रूर कम हो जाता है। इस दशा में अच्छे कवियों की भी कविता नीरस, अतएव प्रभाव हीन हो जाती है सामाजिक और राजनैतिक विषयों में कटु होने के कारण, सच कहना भी जहाँ मना है, वहाँ इन विषयों पर कविता करने वाले कवियों की उक्तियों का प्रभाव क्षीण हुए बिना नहीं रहता। कवि के लिये कोई रोक नहीं होनी चाहिये अथवा जिस विषय में रोक हो उस विषय पर कविता ही न लिखनी चाहिये। नदी, तालाब, बन, पर्वत, फूल, पत्ती, गरमी सरदी आदि ही के वर्णन से उसे संतोष करना उचित है।