पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२
रसज्ञ-रञ्जन
 

चित्त जितना पहले आकृष्ट होता था उतना अब नही होता। हजारो वर्ष से कविता का क्रम जारी है। जिन प्राकृतिक, बातो का वर्णन कवि करते है उनका बर्णन बहुत कुछ अब तक हो चुका। जो नये कवि होते है वे भी उलट फेरसे प्रायः उन्ही बातो का वर्णन करते है। इसीसे अब कविता कम हृदय-ग्राहिणी होती है। संसार मे जो बात जैसी देख पड़े कवि को उसे वैसा ही वर्णन करना चाहिये। उसके लिये किसी तरह की रोक या पावन्दी का होना अच्छा नही। दवाब से कवि का जोश दब जाता है उसके मन से जो भाव आप ही आप पैदा होते है उन्हें जब वह निडर होकर अपनी कविता में प्रकट करता है तभी उसका असर लोगो पर पूरा-पूरा पड़ता है। बनावट से कविता बिगड़ जाती है। किसी राजा या किसी व्यक्ति विशेप के गुण दोषो को देख कर कवि के मन मे जो भाव उद्भूत हों उन्हे यदि वह बेरोक टोक प्रकट करदे तो उसकी कविता हृदयद्रावक हुए बिना न रहे। परन्तु परतन्त्रता; या पुरस्कार-प्राप्ति यो और किसी कारण से, सच बात कहने मे किसी तरह की रुकावट पैदा हो जाने से यदि उसे अपने मन की बात कहने का साहस नहीं होता तो कविता का रस जरूर कम हो जाता है। इस दशा मे अच्छे कवियो की भी कविता नीरस, अतएव प्रभाव हीन हो जाती है सामाजिक और राजनैतिक विपयो मे कटु होने के कारण, सच कहना भी जहाँ मना है,वहाँ इन विषयो पर कविता करने वाले कवियो की उक्तियों का प्रभाव क्षीण हुए बिना नही रहता। कवि के लिये कोई रोक नही होनी चाहिये अथवा जिस विषय मे रोक हो उस विपय पर कविता ही न लिखनी चाहिये। नदी, तालाब, बन, पर्वत, फूल, पत्ती, गरमी सरदी आदि ही के वर्णन से उसे संतोष करना उचित है।