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रसज्ञ-रञ्जन
 

करने लगे और यदि वह उसे सचमुच ही सच समझे अर्थात्य यदि उसकी भावना वैसी ही हो, तो वह भी असलियत से खाली नहीं, फिर चाहे और लोग उसे उलटा ही क्यो न समझते हो। परन्तु इन वातो मे भी स्वाभाविकता से दूर न जाना चाहिए। क्योकि स्वाभाविकता अर्थात् 'नेचुरल' ( natural) उक्तियाँ ही सुनने वाले के हृदय पर असर कर सकती हैं, अस्वाभाविक नहीं। असलियत को लिए हुए कवि स्वतन्त्रता-पूर्वक जो चाहे कह सकता है; असल बात को एक नए साँचे में ढालकर कुछ दूर तक इधर-उधर भी उड़ान भर सकता है; पर असलियत के लगाव को वह नही छोड़ता। असलियत को हाथ से जाने देना मानो कविता को प्रायः निर्जीव कर डालना है। शब्द और अर्थ दोनो ही के सम्बन्ध मे उसे स्वाभाविकता का अनुधावन करना चाहिए। जिस बात के कहने में लोग स्वाभाविक रीति पर जैसे और जिस क्रम से शब्द-प्रयोग करते है वैसे ही कवि को भी करना चाहिए। कविता में उसे कोई वात ऐसी न कहनी चाहिए जो दुनियाँ मे न होती हो। जो बाते हमेशा हुआ करती है, अथवा जिन बातो का होना सम्भव है, वही स्वाभाविक है। अर्थ की स्वाभाविकता से मतलव ऐसी ही वातो से है। हम इन बातो को उदाहरण देकर अधिक स्पष्ट कर देते, पर लेख बढ़ जाने के डर से वैसा नहीं करते।

जोश से यह मतलब है कि कवि जो कुछ कहे इस तरह कहे मानो उसके प्रयुक्त शब्द आप ही आप उसके मुंह से निकल गये है। उनसे बनावट न जाहिर हो। यह न मालूम हो कि कवि ने कोशिश करके ये बाते कही है; किन्तु यह मालूम हो कि उसके हृद्गत भावो ने कविता के रूप मे अपने को प्रकट कराने के लिए उसे विवश किया है। जो कवि है उसमें जोश स्वाभाविक होता है। वर्ण्य वस्तु को देख कर किसी अदृश्य-शक्ति की प्रेरणा