पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/७५

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६-हंस-संदेश
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भी कुछ न समझती थी। एक बार उसका गर्व-गर्भित व्यवहार मुझे दुःसह हो उठा इसलिए मैंने उसके गर्व को दूर करना चाहा। मैं एक सर्वाङ्गसुन्दरी रमणी की खोज में निकला। इसमें मैं बहुत दिन तक हैरान रहा। आखिर को मुझे कामयाबी हुई। विदर्भ-देश के राजा भीम की कन्या दमयन्ती को देख कर मैं स्तम्भित हो गया। वैसी सुन्दरी मैंने कभी नहीं देखी थी! उसका चित्र मे खीच लाया। उसे देख कर मेरी घरवाली की अकल ठिकाने आ गई। तब से उसका गर्व दूर हो गया और वह मुझे वक्त पर रोटी देने लगी।

एक घण्टे तक, साहित्याचार्य कामेश्वर शास्त्री ने दमयन्ती के रूप का वर्णन किया। उस समय सुरेन्द्र-सभा मे अनेक सुन्दरियाँ बैठी हुई थी। दमयन्ती का नखशिख-वर्णन सुन कर उनकी अजीव हालत हुई। वे एक-दूसरे का मुंह ताकने लगी। तिलोत्तमा का चेहरा काले तिल के समान काला पड़ गया। मदालसा का सौदर्य-मद उतर गया। सुलोचना ने अपने लोचन्द बन्द कर लिए। सुमध्यमा सखियो के मध्य मे छिप गई। मेनका का मन मलिन हो गया। कलावतो अपनी कलाओं को भूत गई। सुविभ्रमा का विभ्रम भ्रम मे पड गया। शशिप्रभा नि म 'हो गई और चित्र-लेखा चित्र के समान वैठी रह गई।

शास्त्रीजी की बात सुन कर मैं बहुत खुश हुआ। मै वहाँ से फौरन ही उड़ा। कोई दो घण्टे मे विदर्भपुरी में दाखिल हुआ। वहाँ मै दमयन्ती के प्राङ्गण मे पहुँचा। उस जगह एक हौज था। उसमे एक फब्बारा था। उसको चोटी पर मैं जा बैठा। कुछ देर मे मुझे वहाँ दमयन्ती देख पडी। उसके रूप को देख कर मैं अचरज मे पड़ गया। मित्र, इसके पहले मैने वैसी सुन्दरी कहीं न देखी थी। रूप-वर्णन मे शास्त्रीजी की जड़ता का मुझे तब