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७-हंस का नीर-क्षीर-विवेक
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निर्व्याज मित्र उस हंस को उसने हृदय से लगा लिया। मांगने से कल्पवृक्ष मांगी हुई चीज देता है और चिन्तामणि चिन्तन करने पर चिन्तित पदार्थ के पास पहुंचता है। परन्तु बिना प्रार्थना और चिन्तना ही के मुझे एक अलौकिक प्रियतमारत्न प्राप्त करने की चेष्टा करके तूने इन दोनों को नीचे कर दिया। इस प्रकार राजा नल पक्षी से कह ही रहा था कि सायंकाल का शङ्ख बजा और उसे सायन्तनी कृति के लिये उठकर महलों में जाना पड़ा।

 


 

७–हंस का नीर-क्षीर-विवेक

संस्कृत-साहित्य में हंस, पिक, भ्रमर और कमल की बड़ी धूम है। बिना इनके कवियों की कविता फीकी होजाती है। कोई पुराण, कोई काव्य, कोई नाटक ऐसा नहीं जिसमें इनका जिक्र न हो। इन सब में कवियों ने एक न एक विशेषता भी रक्खी है। यथा—हंस, मिले हुए दूध और पानी को अलग-अलग कर देता है, दूध पी लेता है और पानी छोड़ देता है। पिक अपने बच्चे कौओं के घोंसलों में रख आता है और बड़े होने तक़ उन्हीं से उनकी सेवा कराता है। भ्रमर, आम की मंजरी से अतिशय प्रेम रखता है, पर चम्पे के पास तक नहीं जाता। कमल चन्द्रमा से द्वेष रखता है, उसकी विद्यमानता में वह कभी नहीं