पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/११३

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पंचम प्रभाव भावार्थ-( सखी का वचन सखी से ) राधिका को सुना सुनाकर काम- त्रास से भीत घनश्याम श्रीकृष्ण अपनी वानरी सेना को नाम ले लेकर बुलाते हैं। ( उन्होंने गोप सखाओं का साथ छोड़ दिया है, वानर सखाओं का साथ किया है, वानर हैं शाखामृग, वृक्षों पर ही अपने झुंड के साथ रहते हैं, उन्हें आवश्यकता पड़ने पर नाम ले लेकर बुलाना पड़ता है )। श्रीकृष्ण कहते हैं कि गोप सखा तो अपने भाइयों के संगी हैं, उनके साथ साथ रहते हैं ( मेरे साथ रहना उन्होंने छोड़ दिया है )। रहे वे वानर सो वे दास की भांति चित्त को समझकर ही साथ रहते हैं। प्रायः वृक्षों पर ही डटे रहते हैं । मैं चाहूँ या बुलाऊँ आते हैं अन्यथा नहीं । गोप सखा नटखटपना स्वयम् करते थे और नाम मेरा लगाते थे। वे वानर बेचारे तो मिलाप और बातचीत दोनों से रहित हैं। न तो उनका निरंतर साथ रखा जा सकता है और न वे वार्तालाप करने के योग्य हैं । गोपों के साथ बन जाना मैंने छोड़ दिया है । रहा यहाँ समय काटने का प्रश्न सो इन्हीं वानरों को सखा बना लिया है इनसे कुछ समय तक मन बहलाया, फिर ये डाल पर जा लटकते हैं । मैं अकेले रह जाता हूँ। श्रीकृष्ण को प्रकाश स्वयंदूतत्व यथा-( सवैया ) (१५६) बन जैयै चलौ, कोऊ ठाली है केसव हो तुम हैं तौ अरे अरिहौ। कछु खेलियै खेलि न पावत आज ही भूल्यो न भूल्यो गरे परिहो। हितु है हिय, है किधों नाही तऊ हितु नाहिं हिये तु लला लरिहौ । हम सों यह बूझिये ऐसी कहौ ब कही हो कही सु कहा करिहौ।१०। शब्दार्थ-जैबे = जाना है। ठाली= बैठी ठाली, फालतू, बेकाम । अरिहो - अड़ोगे, बरजोरी करोगे । ही- हृदय । हितु-प्रेम। भावार्थ-नायक और नायिका का संवाद वरिणत है- नायक-बन जाना है, चलो। नायिका-यहां क्या कोई बैठी ठाली है ? ( जो बन को चले)। नायक-तुम तो हो। नायिका-हाँ, हूँ तो क्या बरजोरी करोगे? -(नहीं) कुछ खेल खेलें। नायिका-खेलना तो आता ही नहीं। नायक-(अब तक आता था) क्या आज ही खेलना भूल गया है। नायिका-( मान लीजिए कि ) नहीं भूला है (माता ही है तो क्या) गले पड़ेंगे ( बरबस खेल खेलेंगे )। १७-जैयै-जैबे, कों जू । है-हौं, ही। परी--अरे । खेलिय-खेलन । मूल्यो-भूलो न भूलौ । हिय है--हिय में । तु-तौ । ब--जो । सु-ब। नायक-