पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१२

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ग्रंथ लिखे या नहीं, कुछ पता नहीं। हिंदी में केशवदास ने 'शृंगारतिलक' का प्रधान रूप में प्राधार लेकर रसिकप्रिया का निर्माण किया। केशवदास की परंपरा भी हिंदी में कुछ दूर तक दिखाई देती हैं । 'देव' ने एक ओर केशव की शैली लेकर शृंगारतिलक से अपने को जोड़ा दूसरी और रसतरंगिणी से सहायता ली। शृंगार और नायिकाभेद के इस प्रकार हिंदी में दो प्रवाह हैं । एक का संबंध रुद्रट-रुद्रभट्ट से जुड़ता है दूसरे का भानुभट्ट या भानुदत्त से । नायिकाभेद की शाखा ने भानुभट्ट का ही प्रधान रूप में ग्रहण किया है । उज्ज्वलनीलमणि में जो भक्तिभावित नायिकाभेद आया है उसका प्रवाह हिंदी में नहीं चला। उसका हिंदी की परंपरा में ग्वाल ने अपने रसिकानंद में उल्लेख किया है। वह भी नायिकाभेद के प्रसंग में नहीं । 'रसिकप्रिया' और 'शृंगारतिलक' का मिलान करने स्पष्ट हो जाता है कि केशव ने उसी ग्रंथ को सामने रखा है। सामग्री कामशास्त्र से भी ली गई है, पर बहुत थोड़ी । केशव ने वेश्या का उल्लेख भर किया है । रसों के प्रकाश- प्रच्छन्न रूप भी इन्होंने वहीं से रखे हैं। प्रकाश-प्रच्छन्न का उल्लेख रुद्रट ने भी किया है । फिर आगे भी ये भेद चले। शृंगारतिलक के नायिकाभेद-संबंधी प्रवाह में रसमंजरी से मुख्य पार्थक्य है-मुग्धा, मध्या और प्रौढ़ा के निरूपण में । मुग्धादि के जो विशेषण दिए गए हैं वे भिन्न भिन्न प्रकार के हैं। रुद्रट के यहाँ भी इनके विशेषण भिन्न हैं । यहाँ विस्तारभय से दिग्दर्शन मात्र कराया जाता है । काव्यालंकार और शृंगारतिलक के साथ साहित्यदर्पण को इसलिए जोड़ लिया जाता है कि हिंदी के नायिकाभेद के प्रसंग में आधारग्रंथ के रूप में उसका भी उल्लेख किया गया है- काव्यालंकार शृंगारतिलक साहित्यदर्पण रसमंजरी मुग्धा- १ नवोढ़ा प्रथमावतीर्णयौवना नवोढा २ नवयौवनजनित- नवयौवनभूषिता प्रथमावतीर्ण विश्रब्धनवोढा मन्मथोत्साहा मदनविकारा ३ रतिनैपुरणानभिज्ञा नवानंगरहस्या रतिवामा अंकुरितज्ञातयौवना ४ साध्वसपिहितानुरागा लज्जाप्राय रति मानमृदु अंकुरितअज्ञातयौवना ५ X समधिकलज्जावती x मध्या- १ आरूढयौवनभरा आरूढयौवना प्ररूढयौवना २ आविर्भूतमन्मथोत्साहा प्रादुर्भूतमनोभवा नववधू T X प्ररूढस्मरा x