पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१२५

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षष्ठ प्रभाव १२७ शब्दार्थ- -अनयास = अनायास, स्वतः । तिनसों-तिनको उन्हें । बिमति विशेष मतिमान् , अधिक बुद्धिमान् । अथ विभाव नामभेद-वर्णन-( दोहा ) (१८४) सब बिभाव द्वै भाँति के केसवदास बखानि । आलंबन इक दूसरो उद्दीपन मन प्रानि ।४। (१८५) जिन्हैं अतन अवलंबई ते आलंबन जानि । जिनतें दीपति होति है, ते उद्दीप बखानि ।। शब्दार्थ-प्रतन = अशरीरी, रस-भाव। दीपति = दीप्ति । उद्दीप उद्दीपन । अथ प्रालंबन-स्थान-वर्णन-(छप्पय ) (१८६) दंपति जोबन रूप जाति लच्छनजुत सहिजन । कोकिल कलित बसंत फूल फल दल अलि उपबन । जलचर जलजुत अमल कमल कमला कमलाकर । चातक मोर सु सन्द तड़ित धनु अंबुद अंबर । सुभ सेज दीप सौगंध गृह पान गान परिधान मनि । नव नृत्य भेद बीनादि रव आलंबन केसव बरनि ।। शब्दार्थ -दल- पत्ते। कमला = लक्ष्मी, शोभा। कमलाकर = सरो- वर । तड़ित = बिजली । धनु = इंद्रधनुष। अंबुद = बादल । अंबर = आकाश। परिधान = पहनावा । रव = शब्द । अथ उद्दीपन-वर्णन-( दोहा ) ८७) अवलोकन आलाप परिरंभन नख-रद-दान । चुंबनादि उद्दीप हैं, मर्दन परस प्रवान। शब्दार्थ- -पालाप = बोलना । परिरंभन = आलिंगन । नख-रद-दान - नख-दान (नखक्षत ) और रद-दान ( दंतक्षत ) । परस = स्पर्श । प्रवान = प्रमाण ( माने जाते हैं)। अथ अनुभाव-वर्णन-( दोहा ) (१८८) आलंबन उद्दीप के जो अनुकरन बखान । ते कहिये अनुभाव सब दंपति प्रीति-विधान ।। ४-सब-सो। के -को केसवदास-केसवराइ । बखानि-बखान, बखानु । मानि-पान, प्रानु, मान, मानु। ५-जिन्हें०-जिनही रसु । अवलंबई-प्रवलंब है। जानि-जान, जानु। दीपति ०-दोपतु होत । बखानि-बखान, बखानु । -कमला-मधुकर, मारुत। धनु-घन । पान-पानखांन । रव-सब। ७-है-ए। प्रवान-जान । ८-जो-जे। कहिये-कहिजै ।