पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१२४

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१२६ रसिकप्रिया . ( दोहा ) (१७७) इहि बिधि राधारमन के, बरने मिलन बिसेखि । केसवदास निवास बहु, बुधिवल लीजहु लेखि ३८॥ शब्दार्थ -निवास = स्थान, मिलने के स्थान । (१७८) और जु तरुनी तीसरी क्यों बरनौं यहि ठौर । रस में बिरस न बरनिये कहत रसिक सिरमौर ॥३६। शब्दार्थ-तीसरी तरुनी - तीसरी नायिका (गणिका, सामान्या)। (१७६) ये सब जितनी नायिका बरनी मतिअनुसार । केसवदास बखानियहु बुधिबल अष्ट प्रकार ।४० सूचना-'सरदार' की टीका में यह दोहा नहीं है । (१८०) प्रथम मिलन थल मैं कहे, अपनी मतिअनुसार । हावभाव-वर्णन करौं, सुनि अब बहुत प्रकार ॥४१॥ शब्दार्थ-अपनी = अपनी उद्भावना से। इति श्रीमन्महाराजकुमारइंद्रजीतविरचितायां रसिकप्रियायां श्रीराधाकृष्ण- चेष्टादर्शनमिलनस्थान वर्णनं नाम पंचमः प्रभावः ।। षष्ठ प्रभाव अथ भाव लक्षण-( दोहा ) (१८१) श्रानन लोचन बचन मग प्रगटत मन की बात । ताही सों सब कहत हैं, भाव कविन के वात ॥१॥ शब्दार्थ-मग = ( मार्ग ) द्वारा । तात=प्रिय । भावार्थ-मुख ( चेहरा ), नेत्र और वचन के द्वारा मन की बात का प्रकट होना 'भाव' कहलाता है। (१८२) भाव सु पंच प्रकार के, सुनि विभाव अनुभाव । थाई, सात्विक कहत हैं ब्यभिचारी कविराब ।। शब्दार्थ-थाई = स्थायी। अथ विभाव-वर्णन-( दोहा ) (१८३) जिनते जगत अनेक रस, प्रगट होत अनयास । तिनसौं बिमति बिभाव कहि, बरनत केसवदास ।३। ३७-गोपनि०-गुवालनि के गन में । ३८–निवास-बिलाम । इति श्री- राधाकृष्ण-नायक नायिका । १-प्रगटत-प्रगटति । २-पंच-पांच प्रकार को। सुनि-सुनु । पाई.- अस्थाई सात्त्रिक क है । ३-जगत-जगुति । बिमति-कहत । कहि-कबि ।