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पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१२८

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१३० रसिकप्रिया प्रकार को नई रसपद्धति द्वारा वह वन में सरलतापूर्वक उन्हें हरण करके खेल ही खेल में ले गई। सूचना-इस छंद में डाकुओं की क्रियाओं का साम्य राधिका की चेष्टाओं से स्थापित किया गया है । 'हेलहीं हेली" में 'हेला' नाम भी रख दिया गया है। अलंकार-रूपक । श्रीकृष्ण को हेला हाव, यथा-( सवैया ) (२००) बेनु सुनाइ बुलाइ लई बन भौन बुलाइ कै भाँ ति भली को। फूलि गयो मन फूल्यो बिलोकत केसव कानन रासथली को। भधरारस प्याइ कियो परिरंभन चुंबन के मुख कामकली को । हेलहिं श्रीहरि नागर श्राजु हरयो मन श्रीबृषभानुलली को।२०। शब्दार्थ-धेनु = ( वेणु) वंशी। भाँति भली को भली भाँति से । फूल्यो = फूला हुमा ( देखकर ) । परिरंभन = प्रालिंगन । कामकली = काम की कलिका ( नायिका )। हेलहिं = खेल में ही । नागर = चतुर । अथ लीला हाव-लक्षण-(दोहा ) (२०१) करत जहाँ लीलानि को प्रीतम प्रिया बनाय । उपजत लीला हाव तह, बरनत केसवराय ।२१॥ शब्दार्थ-लीला=रूप-परिवर्तन, प्रिय प्रेमिका बने प्रेमिका प्रिय । श्रीराधिकाजू को लीला हाव, यथा-( सवैया ) (२०२) पायन को परिबो अपमान अनेक सों केसव मान मनैवो। मीठो तमोर खवाइबो खैबो बिसेषि चहूँ दिसि चौंकि चितैयो । चीर कुचीलनि ऊपर पौढ़ियो पातन के खरके भजि ऐबो। आँखिन मृदिक सीखति राधिका कुंजन तें प्रतिकुंजन जैबो ।२२। शब्दार्थ-प्रपमान० अनेक अपमान सहकर । मीठो = मधुर । तमोर तांबूल, पान । चीर कुचीलनि = मैले वस्त्रों ( पर ) पात = पत्ता। खरके 3 खड़कने पर। ऐबो = माना । प्रतिकुंजन - अन्य कुंजों में । भावार्थ-( सखी उक्ति सखी प्रति ) हे सखी, ( राधिका श्रीकृष्ण का रूप धारण करके ) श्रीकृष्ण के पैरों पड़ना, अनेक अपमान सहकर मान २०-बेनु-बैन । बन-भव, वह । फूलि-भूलि । फूल्यो-मूल्यो। रस- मधु। प्रधरा०-रूप महामधु पान कराय कियो परिरंभन कामकली को, चुंबन रंभन कामकली को । मन-तब। २१- लोलानि-ललितानि । २२- अनेक-अनेक सों मान छोड़ाह मनबो। मीठो-सीठो, सीखो। चोर-चोल । पातन-पानन के खरके भजि जैबो। भजि-भगि।