पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१२९

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षष्ठ प्रभाव १३१ . मनाना, विशेष रूप से मधुर पान खिलाना एवम् खाना, चौंककर चारो ओर देखना, मैले कुचले वस्त्रों पर लेटना, पत्ता भी खड़कने से भाग जाना तथा आँखें मूंदकर एक कुंज से अन्य कुंज में जाना सीख रही हैं । अलंकार-प्रथम समुच्चय । श्रीकृष्णजू को लीला हाव, यथा-(सवैया ) (२०३) झाँकि झरोख नि में चढ़ि ऊँचे अवासनि ऊपर देखन धावै ! निंदत गोपचरित्रनि को कहि केसव ध्यान ककै गुन गावै । चित्रित चित्र में आपुन यों अवलोकत आनंद सों उर लावै । आँगन तें घर में घर तें फिरि आँगन बासर को बिरमावै ।२३। शब्दार्थ--(श्रीकृष्ण राधा का रूप धारण करते हैं) अवासनि = महलों (पर)। ककै = करके । आपुन = अपने को ही । अवलोकत = देखते हुए। उर लावै = छाती से लगाते हैं। बासर को बिरमावै= दिन बिताते हैं। अथ ललित हाव-लक्षण-(दोहा ) (२०४) बोलनि हँसनि बिलोकिवो चलनि मनोहर रूप । जैसे तैसे बरनिये ललित हाव अनुरूप ।२४। श्रीराधिकाजू को ललित हाव, यथा-( कबित्त) (२०५) कोमल विमल मन, विमला सी सखी साथ, कमला ज्यों लीने हाथ कमल सनाल के । नूपुर की धुनि सुनि भोरे कलहंसनि के, चौंकि चौंकि परै घारु चेटुवा मराल के । कचनि के भार कुचभारनि सकुचभार, लचकि लचकि जात कटितट बाल के। हरें हरें बोलति बिलोकति हसत हरें, हरें हरें चलति हरति मन लाल के ।२५॥ शब्दार्थ-बिमला = सरस्वती। कमला ज्यों० = सनाल कमल हाथ में ले लेने से वह लक्ष्मी की तरह जान पड़ती है । भोरे० = कलहंसों (की ध्वनि) के धोखे में माकर । चारु % सुंदर । चेटुवा मराल के = हंस के बच्चे । कचनि के भार=केशों के बोझ से। सकुच-संकोच, लज्जा । कटितट = कमर । बाल = नायिका । हरे हरे-धीरे धीरे । लाल-नायक । अलंकार-भ्रांतिमान् (द्वितीय चरण में ) । सूचना-'कविप्रिया' में यह छंद 'मंदमति' के उदाहरण में दिया गया है । २३-में-पै । अवलोकत-अवलोकन । उर०-उरभावै। घर में०-प्रांगन ते घर तें फिरि प्रांगन यों निसिबासर । २४-हाव०-सुभाष अनूप । २५- हसत-हरेंई।