पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१३४

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रसिकप्रिया भावार्थ-(सखी की उक्ति सखी से) हे सखी, वृषभानु की पुत्री राधिका ने आज श्रीकृष्ण को उलाहमा दिया, फिर गाली तक दी, मन में प्रेम की कमी करके अर्थात् ईषत् रोष से कमलों की मार भी दी। फिर (ठंढी पड़कर) नवीन सुगंधित द्रव्य उनके शरीर में लगाकर और उन्हें छाती से चिपकाकर सीख दी और श्रीकृष्ण ने (बिना कुछ कहे सुने चुपचाप ) सुख पाकर उसे ग्रहण किया, इन सबका उत्तर देने के लिए नंदकुमार ने अपना सिर नीचे से थोड़ा भी ऊपर नहीं किया ( सिर जो नीचा किया तो वह नीचे का नीचे ही रह गया, फिर उठाया ही नहीं, एक चुप तो सौ चुप ) । अथ विलास हाव-लक्षण-( दोहा ) (२१६) खेलत बोलत हँसत अरु, चितवत चलत प्रकास। जल थल केसवदास कहि, उपजत हाव बिलास ।३६॥ श्रीराधिकाजू को विलास हाव, यथा-( कबित्त ) (२१७) किलकत अलिक जु तिलक-चिलक मिस, भौंहनि में बिभ्रमनि भावभेद दीने हैं। लोचननि सोचन-सकोचनि नचावति है, दसनचमक ही चकित चित्त कीने हैं। केसौदास मंदहास अनायास दास करि, लीने केसौराय जिय जद्यपि प्रबीने हैं। मोहन के तन मन मोहिबे कौं मेरी आली, तेरो मुख सुख ही अनंत ब्रत लोने हैं ।३७। शब्दार्थ-अलिक :भाल, माथा । चिलक = चमक । भावभेद = अनेक भाव । बास-सुगंध । अनायास %Dबिना श्रम के । सुख ही = सरलता से । भावार्थ-( सखी की उक्ति नायिका प्रति ) हे सखी, श्रीकृष्ण के शरीर एवम् मन को वशीभूत करने के लिए तेरे मुख ने अनेक ब्रत ( ढंग ) किए हैं। माथे पर तिलक की चमक का बहाना उन्हें किलकाता है (आनंदित करता है)। भौहों के अनेक विलासों ( भंगिमाओं ) से उनमें भावों के अनेक स्वरूप लक्षित होते हैं । नेत्रों के सोच और संकोच की मुद्रा से तू उन्हें नचाती है, दांत की चमक ने तो उनके चित्त को ही चकित कर दिया है। अपने मंद हास से तो उन्हें अनायास ही अपना दास बना लिया है, यद्यपि वे बड़े प्रवीण गिने जाते हैं ( अर्थात् तेरे मुख की चेष्टाओं का अत्यधिक प्रभाव उन पर पड़ता है)। ३६-हाव-विविध । ३७-भाव-भौन । केसौदास०-मंदहास मुखबास । केसोराय-केसीदास । प्रबोने-नवीने । पाली-सखी, भटू ।