पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१३५

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षष्ठ प्रभाव SONG सूचना-(१) ब्रत करने वाला व्रत का प्रभाव जिन पर डालना चाहता है उन पर उसका प्रभाव किस प्रकार क्रमशः पड़ता है और वे उसके वश हो जाते हैं इसका इसमें क्रम से वर्णन है । पहले तो वे अनाश्रित किलकते हैं, फिर उनमें अनेक भाव जगते हैं, तदनंतर वे नाचने लगते हैं, पुनः थकित होते हैं और अंत में वश में हो जाते हैं । (२) 'अलिक' का अर्थ 'अलीक, मिथ्या' भी कर सकते हैं। श्रीकृष्ण को विलास हाव, यथा-( कबित्त ) (२२८) जिन न निहारे ते निहोरत निहारिबे कौं काहू न निहारे जिन कैसेहूँ निहारे हैं। सुर नर नाग नवकन्यनि के प्रानपति, पतिदेवतानिहूँ कि हियनि बिहारे हैं। इहि बिधि केसौदास रावरे असेष अंग । उपमा न उपजी बिरंचि पचि हारे हैं। रूप-मद-मोचन मदन मद-मोचन तीय-व्रत-मोचन बिलोचन तिहारे हैं।३।। शब्दार्थ-निहारे = देखे । निहोरत-प्रार्थना करते हैं, लालसा करते हैं । कैसे० = किसी प्रकार (संयोग से या अनेक कष्ट झेलकर)। नक्कन्या - नवीन कन्या, पंच कन्या (अहल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी)। पति- देवता=पतिव्रता । असेष अंग = संपूर्ण रूप से । उपजी बन सकी। बिरंचि = ब्रह्मा । पचि हारे = परेशान हो गए। भावार्थ-सखी की उक्ति नायक प्रति ) हे कृष्ण, जिन्होंने आपके नेत्र नहीं देखे वे देखने की लालसा करते हैं । जिन्होंने किसी प्रकार ( कष्ट सहकर भी) आपके नेत्र देख लिए वे फिर किसी के नेत्रों को नहीं देखते (मापके नेत्रों के सौंदर्य के सामने किसी के नेत्रों का सौंदर्य नहीं ठहरता)। ये नेत्र सुर, नर, नाग की कन्याओं और नवकन्याओं (पंच कन्याओं) को प्राणों की भांति प्यारे हैं और पतिव्रता स्त्रियों के भी हृदय में विहार करनेवाले हैं। इसी भांति आपके संपूर्ण अंग ( सुंदर ) हैं, जिनकी समता के लिए उपमान बनाते बनाते ब्रह्मा परेशान होकर हार मान गए, परंतु उपमान न बन सके । आपके दोनो नेत्र सौंदर्य का मद दूर करनेवाले एवम् कामदेव का गर्व छुड़ा देनेवाले और स्त्रियों के व्रत ( पातिव्रत ) को विचलित करनेवाले हैं अथ किलकिंचित हाव-लक्षण- (दोहा) (२१९) श्रम अभिलाष सगर्व स्मित, क्रोध हर्ष भय भाव । उपजत एकहि बार जहँ तहँ, किलकिंचित हाव ।३।। -कैसेंहूं-कैसे कै । केसौदास-कैसौराय । उपजी-उपजै । रूप-मान । हैं-कौं, किधों। बिलोचन-को लोचन । ३६-स्मित-सुख । तह-सो ।